वे स्त्री को प्राकृतिक रूप में बुद्धिहीन, सांस्कृतिक तौर पर अनुकूलित, अबाधित भावनाओं एवं नैतिक दौर्बल्य से ग्रसित मानते हैं।
2.
कानूनी यथार्थवाद का आवश्यक तत्व यह है कि सभी कानून की रचना मानव प्राणी ने की है और इस प्रकार यह मानव के नैतिक दौर्बल्य नश्वरताओं, एवं अपरिपूर्णताओं के अधीन है.